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Friday 5 June 2015

वह अपनी खुशी समझता हं़

मुट्ठी भर चने खाकर बाप एक लोटा पानी पी लेता है,
अपने बच्चे के महकते टिफिन को सूंघकर वह जी लेता है|
धूप में रिक्शा खींचकर कमाये चंद रुपयों से वह,
आईएएस की तैयारी करते बेटे के लिए घी लेता है|
बच्चों को तरसने दिया जिसने कपड़ों के लिए,
फटे हुए पाजामे को चुपके से वह बाप सी लेता है|
जो भी बना है घर में सब औलादों को परोसकर,
अपने लिए वह भूखा बाप छोटी सी तस्तरी लेता है|
उसकी जेब से बरसते हैं चॉकलेट और बिस्कीट,
बच्चों की मासूम हंसी में
हीं वह अपनी खुशी समझता हं़

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